सुभाष चंद्र बोस जयंती सुभाष चंद्र बोस की कहानी Subhash Chandra Bose in Hindi

सुभाष चंद्र बोस जयंती सुभाष चंद्र बोस की कहानी Subhash Chandra Bose in Hindi

सुभाष चंद्र बोस जयंती:- 17 अगस्त 1945 Netaji आपने 6 ऑफिसर हबीबूर, डेबनाथ, गुलजार, प्रीतम, अबिद, और ऐयर के साथ साइगोन पहुंचे टोक्यो की ओर रवाना हुए।

लेकिन वहां पहुंचने के बाद उन्हें जपानीज़ ऑफिसर्स ने बताया कि वह अपने साथियों के साथ नहीं जा सकते क्योंकि प्लेन में सिर्फ एक ही पैसेंजर का जगह खाली है।

इसीलिए उन्हें अकेले ही जाना पडेगा और दूसरा प्लेन कब जाएगा उसका कुछ फिक्स नहीं है। क्योंकि एलाइड पावर ने उन्हें साफ साफ मना कर रखा है कि उनके परमिशन के बिना कोई भी प्लेन नहीं पडेगा।

लेकिन Netaji के ऑफिसर्स ने उन्हें अकेले जाने से मना कर दिया क्योंकि इससे उनके जान को खतरा हो सकता था और कुछ देर बातचीत करने के बाद जपानीज़ ऑफिसर्स मान गए लेकिन सिर्फ एक को ही अपने साथ ले जाने के लिए।

इसीलिए Netaji ने हबीबुर को अपने साथ ले जाने का तय किया।

पलने का रूट सिम्पल था, साइगोन से टाइहोकू, टाइहोकू से डैरेन और फिर डैरेन से टोक्यो और तकरीबन 5 बज के 20 मिनट पर Netaji का दो इंजन वाला बोंबर प्लेन टेक ऑफ किया।

टाइहोकू के लिए ऍम लोगों के लिए लेकिन टाइहोकू जाने से पहले उनका प्लेन अचानक तौरेन मे लैंड हो गया और वहाँ पर पूरी रात बिताने के बाद 18 अगस्त की सुबह उनका प्लेन टेक ऑफ किया ताइहोकू जाने के लिए और दोपहर होते होते उनका प्लेन टाइहोकू मे लैंड हो गया।

लेकिन जब प्लेन टाइहोकू एयरपोर्ट से टेक ऑफ किया तो तकरीबन दो हजार फीट ऊपर जाकर के प्लेन के एक इंजन में आग लग गयी और वह धीरे धीरे करके पूरी प्लेन में फैलने लगी और पायलट ने तुरंत ही प्लेन को टाइहोकू एयरपोर्ट की तरफ मोड दिया।

लेकिन प्लेन जमीन तक पहुंचते पहुंचते बहुत ही बुरी तरह से जल चुका था। चीफ़ पायलट, को पायलट, और जनरल सीधे की ऑन द स्पॉट प्लेन के अंदर ही मौत हो गयी।

हबीबूर जो की बेहोस हो गए थे उन्हें जब होस आया, तो उन्होंने देखा कि Netaji ऊपर से नीचे तक पूरी तरह से गैसोलीन मे भीगे हुए हैं।

और फ्रंट डोर ब्लॉक होने के कारण उन्हें ना चाहते हुए भी आग के अंदर से हो कर के प्लेन के बाहर निकलना पडा।

और जब प्लेन के बाहर वह लोग निकले तो Netaji का सरीर बहुत ही बुरी तरह से जल रहा था। तभी वहांपे रेसकुए टीम पहुच गयी और Netaji के शरीर का आग बुझा दिया।

लेकिन फिर भी Netaji का सरीर बहुत ही बुरी तरह से जल चुका था। इसीलिए उन्हें वहाँ के लोकल मिलिट्री हॉस्पिटल में ले जाया गया और वहाँ पे डॉक्टर योशिमी ने उनका इलाज किया।

लेकिन 18 अगस्त यानी कि सनिवार के दिन 3rd डिग्री बर्न के कारण Netaji की मौत हो गए। सुभाष चंद्र बोस जयंती,

उनके मरने के दो दिन बाद यानि की 20 अगस्त को Netaji का अंतिम संस्कार कर दिया गया और 7 सितंबर को एक जापानी ऑफिसर ने Netaji की अस्थियों को रामामूर्ति को सौंप दी और कुछ दिनों बाद Netaji की अस्थियों को रेंकोजी टेंपल में रख दिया गया।

आज भी वह अस्थिया वहीं पर है, ये पूरी स्टोरी सुनने में नॉर्मल और रियल लगती है राइट?

लेकिन मैं आपको ऐसी कई सारी बातें बताने जा रहा हूँ जो कि प्लेन क्रेस के बाद सामने आई और हमें ये सवाल पूछने पर मजबूर कर देती है कि क्या सच में 18 अगस्त 1945 को Subhas Chandra Bose की मौत हो गई थी, या ये सब एक सोचा समझा प्लान था।

जब 23 अगस्त 1945 मे Netaji की मौत की खबर जापान की एक न्यूज एजेंसी ने छापी तो पूरे भारत के साथ साथ कई और देशो को विश्वास नहीं हो रहा था कि Netaji की मौत हो गई है।

क्योंकि जिस प्लेन क्रैश की बात जापान कर रहा था उसका उसके पास कोई भी विज्वल प्रूफ नहीं था।

ना ही प्लेन हादसे की कोई तस्वीर थी, ना ही Netaji की जले हुए या मरने के बाद की कोई फोटो थी और न ही उनका कोई डेथ सर्टिफिकेट इशू किया गया था तो भला लोग कैसे मान लेते कि नेताजी की मौत उस प्लेन क्रेस में हो गई है।

यह बात से भी हमें इंकार नहीं कर सकते हैं कि प्लेन क्रैश से तीन दिन पहले ही यानी की 15 अगस्त 1945 को जापान ने खुद को वर्ल्ड वार टू में एलाइस के सामने सरेंडर किया था जिसमें अंग्रेज भी थे तो भला नेता जी जापान क्यों जाएंगे?

हम सबको पता है कि नेताजी कितने माहिर थे स्ट्राटेजीस बनाने में यह प्लाॅट क्रैश एक पर्फेक्ट कवर अप होगा Netaji को अंदर ग्राउंड होने के लिए।

हम सब यह तो जानते ही हैं कि Netaji ने ऐसा पहले भी कर रखा है जब अंग्रेजों ने उन्हें उनके घर के अंदर ही बंद कर दिया था।

तो वह कितनी चलाकी से बर्लिन पहुंच गए थे। इंटरनेट पे कई सारी कॉन्स्पिरेसी थियरि है जो की अलग अलग बातें बताती हैं।

Netaji की मौत को लेकर, कुछ का कहना है कि उन्हें अंग्रेजों ने पकड लिया और जेल में ही मार डाला और कुछ का तो यह कहना है कि वह उस दिन प्लेन क्रैश से बच कर पैरिस चले गए और वहां फ्रांस सीक्रेट सर्विस जॉइन कर लिया।

लेकिन यह सब बिना सीर पैर की बातें हैं क्योंकि इनका कोई भी प्रूफ नहीं है हमारे पास। जब मैंने Netaji की मौत के बारे में रिसर्च किया तो मुझे पता चला कि तीन चीज पॉसिबल हो सकती है

Netaji की मौत को लेकर के। पहली यह की उसी दिन उसी प्लेन क्रैश में Netaji की मौत हो गई थी और दूसरी यह की उस दिन प्लेन क्रैश में Netaji बच गए थे और रसिया चले गए, सुभाष चंद्र बोस जयंती,

और अपनी बाकी की जिंदगी रसिया में बिताई और तीसरी ये की उन्होंने प्लेन क्रैश का नाटक किया और इंडिया आकर के चोरी चुपके एक साधू यानि कि बाबा बनकर के रहने लगे।

तो मैंने आपको फ़र्स्ट पॉइंट तो बताई दिया है कि कैसे लैक ऑफ एविडेन्स यानी कि सबूत न होने के कारण प्लेन क्रैश पे विश्वास करना थोडा मुश्किल हो जाता है।

अगर बात करें सेकेंड पॉइंट की यानि कि बाबा वाली बात, तो फैजाबाद में एक बाबा रहा करते थे जिन्हें लोग अभी गुमनामी बाबा कहते हैं तो लोगों का कहना है कि गुमनामी बाबा ही Subhas Chandra Bose थे।

लोग ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि गुमनामी बाबा की मौत के बाद उनके पास से ऐसे कई सारे सामान मिले हैं जो की हमें प्रूफ देते हैं कि गुमनामी बाबा ही Netaji थे।

गुमनामी बाबा के पास टोटल चौबीस बोक्सेस मिले और जब उन बोक्सेस को खोला गया तो उनमें से काफी हैरान कर देने वाली चीजें बाहर आई। क्योंकि एक बाबा के पास से ये सब चीजें मिलना थोडा unexpected था।

मैं आपको उनमें से कुछ चीजों के नाम बता देता हूँ, जैसे की राउंड फ्रेम वाले चश्में, बेल्जियम टाइपराइटर, आजादी के पहले के और आजादी के बाद की न्यूज पेपर, अलग अलग देशों के कई सारी किताबें और एक बहुत ही बडे साइज का फॅमिली फोटो।

और जो लोग गुमनामी बाबा से मिले थे वह कहते हैं कि गुमनामी बाबा कभी भी किसी से फेस टू फेस बात नहीं किया करते थे।

वह अक्सर पर्दे के पीछे से ही बात किया करते थे। Netaji की बहुत सारी फाइलें हैं जो गवर्नमेंट ने अभी तक पब्लिक नहीं की है।

और जब भी गवर्मेंट को उन फाइलों को पब्लिक करने के लिए कहा जाता है तो वह ऐसा कह के मना कर देते हैं कि अगर उन्होंने सारी फाइलें पब्लिक कर दी तो इंडिया का रिलेशन बाकी देशों के साथ बिगड सकता है।

अगर बात करें नेताजी कि रसिया में होने की तो इसके ऊपर कई सारी उङ्कोन्फ़िर्म रिपोर्ट हैं इसीलिए कुछ कहा नहीं जा सकता इसके ऊपर।

जब Netaji की मौत की खबर आई तो लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था। क्योंकि ऐसे वैसे की मौत नहीं हुई थी। सुभाष चंद्र बोस जयंती,

एक सातिर दिमाग वाले महान लीडर की मौत हुई थी और अंग्रेज पहले थे जो बिल्कुल नहीं मान रहे थे कि नेताजी की मौत हो गई है।

उनका ऐसा मानना था कि यह बंदा अपने मौत का नाटक कर रहा है और कहीं जाकर के छुपा हुआ है।

इसीलिए उन्होंने अपने कई आदमी लगाए, की आप पता लगाओ कि क्या ये बंदा सच में मर चुका है या फिर यह सिर्फ नाटक कर रहा है और उसका रिपोर्ट बना कर के हमें दो।

जिसमें से एक था फिग्गेस्स रिपोर्ट। जॉन फिग्गेस्स को एपाइंट किया गया नेताजी की मौत का राज पता लगाने के लिए। फिग्गेस्स ने अपने इन्वेस्टीगेशन की और अपनी रिपोर्ट 25 जुलाई 1945 को सम्मिट कर दिया।

लेकिन इस रिपोर्ट को ब्रिटिश गवर्नमेंट ने काफी कोन्फिडेंटल रखा। लेकिन 1997 में ब्रिटिश गवर्नमेंट ने कई सारे IPI फाइल पब्लिक कर दिया।

लेकिन उन में से कोई भी फिग्गेस्स कि रिपोर्ट नहीं थी। लेकिन अचानक कहीं से फिग्गेस्स रिपोर्ट की एक फोटोग्राफ पब्लिक हो गई और उस फोटोग्राफ के एक पैराग्राफ में लिखा था कि Subhas Chandra Bose के बारे में काफी पूछ ताछ करने के बाद हमें पता चला कि Subhas Chandra Bose की मौत टाइहोकू मिलिटरी हॉस्पिटल 18 अगस्त 1945 को तकरीबन 5 और 8 के बीच हो गई थी।

अगर इतनी सी बात थी तो उन्होंने ये रिपोर्ट को इतना कॉन्फिडेंटल क्यों रखा।

जब हमें आजादी मिली तो उसके बाद लोगों के डिमांड पे इंडियन गवर्नमेंट ने भी तीन कमेटी बनाई Netaji की मौत का राज पता लगाने के लिए। जिसमें से पहली कमेटी सा नवाज कमेटी बनाई गई।

1956 में इस कमेटी के अंदर टोटल तीन मेंबर थे और इस कमेटी के हैड सा नवाज़ खान थे। यह कमेटी ने अपने इन्वैस्टिगेशन में वह सारे लोग से पूछताछ की जिसका संबंध कैसे भी उस दिन के प्लेन क्रैश में था।

इंडिया, जापान, थाईलैंड और वियतनाम के लोगों को मिला के टोटल 67 लोग थे। सुभाष चंद्र बोस जयंती,

उन्होंने डॉक्टर योशिमी जिन्होंने आखिरी समय में नेताजी का इलाज किया था और हबीबूर जो कि नेताजी के साथ सफर कर रहे थे दोनों से पूछताछ की थी।

हालांकि दोनों के बयान में थोडे से मिसमैच थे। पूरी इन्वैस्टिगेशन कंप्लीट होने के बाद कमेटी के दो मेंबर खान और मैत्रा ने अपना कोंक्लूसिओन दिया कि नेताजी की मौत 18 अगस्त 1945 को ही हो गई थी।

प्लेन क्रैस में। नेताजी के भाई सुरेश चंद्र बोसे से जब फाइनल रिपोर्ट पे साइन करने के लिए कहा गया तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया और बाद में उन्होंने

एक नोट लिखा जिसमें उन्होंने बताया कि सा नवाज़ कमेटी के लोगों ने जानबूझ कर नेताजी की बहुत सी अहम सबूत अपने पास रख ली है

और जवाहरलाल नेहरू ने यह कमिटी जानबूझ कर बनाई थी, नेताजी को प्लेन क्रेस में मरा हुआ साबित करने के लिए। और उन्होंने यह तक लिखा कि कमेटी के दूसरे मेंबर और बँगला के सीएम उनको प्रेशराइज कर रहे हैं

फाइनल रिपोर्ट पर साइन करने के लिए। ये सब होने के बाद दूसरा कमीशन बनाया गया, खोसला कमीशन 1970 में और इसके अंदर अकेले जी.डी खोसला हि थे।

इनका भी रिपोर्ट फिग्गेस्सऔर सा नवाज़ कमेटी की तरह ही सेम था। फिर जा करके 1999 में मुखर्जी कमीशन बनाया गया। इसके अंदर सुप्रीम कोर्ट के जज एम.के मुखर्जी को एपाइंट किया गया।

और ये पूरी की पूरी इन्वैस्टिगेशन ताइवान में हुई थी और इसने ऐसे कई सारे राज खोले जिससे नेताजी के डैड मिस्टरि को अलग ही डाइरैक्शन मिल गया।

उन्होंने कोङ्क्लुड़ किया की जो अस्थियां रेंकोजी टेंपल में रखी गई हैं वह नेताजी की है ही नहीं बल्कि वह एक जापानी सोल्जर ईचीरों ओकुरा कि है। सुभाष चंद्र बोस जयंती,

इन्होने यह भी कोङ्क्लुड़ किया कि, नेताजी की मौत प्लेन क्रैश में हो ही नहीं सकती और यह बात को उन्होंने बहुत अच्छी तरह से समझाया भी।